मै बहती नदी
मैं बहती नदी हूं
मुझे बहने दो न.....
अपूर्णता ही मेरी पहचान है
पहाड़ों से जल भर
सागर तक मुझे बहने दो न.....
पूर्ण होते ही रुक जाऊंगी
कईयों की निर्भरता है मुझ पर
उनकी तृष्णा बुझाने दो न ....
पूर्ण होते ही सिमट जाऊंगी
मुझे अपनी अपूर्णता पर
मिलती खुशियां है.....
हां कुछ कमियां है मुझ में
पर यह कमियां मेरी पहचान बने .....
ये खुशियां बरकरार रहने दो न
मैं बहती नदी हूं मुझे बहने दो न....
अर्चना तिवारी
संजय भास्कर
14-Apr-2021 03:20 PM
बहुत ही सुंदर सृजन :)
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Natash
14-Apr-2021 02:05 PM
👍👍👍
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